रसगुल्ला का आविष्कार पचिम बंगाल मे हुआ था,
इसे नौबीन चंद्र दास जी ने बनाया था.
पश्चिम बंगाल की मानें तो 1845 में जन्में नवीन चंद्र दास ने रसगुल्ले की खोज की थी. हालांकि, ओडिशा का कहना है कि रसगुल्ला तो पुरी में प्रभु जगन्नाथ को सदियों से अर्पित हो रहा है. नवंबर 2017 में पश्चिम बंगाल को 'बंगाल रसगुल्ला' के लिए जीआइ टैग मिला था। इसके बाद साल 2019 में 'ओडिशा रसगुल्ला' को भी जीआई टैग प्रदान किया गया.
ओडिशा के इतिहासकारों के अनुसार, रसगुल्ला की उत्पत्ति पुरी में खीरा मोहना के रूप में हुई थी, जो बाद में पहाला रसगुल्ला के रूप में विकसित हुआ. इसे पारंपरिक रूप से पुरी के जगन्नाथ मंदिर में देवी लक्ष्मी को भोग के रूप में चढ़ाया जाता है.
रसगुल्ला, चीनी की चाशनी में भिगोए गए घर के बने पनीर के पकौड़ों से बनी एक पारंपरिक भारतीय मिठाई है. यह मिठाई भारतीय उपमहाद्वीप में आम है, खासकर पश्चिम बंगाल और ओडिशा में.
बंगाल में रसगुल्ला के इन्वेंशन का दावा. ऐसा माना जाता है कि स्पंजी सफेद रसगुल्ला को वर्तमान पश्चिम बंगाल में 1868 में कोलकाता स्थित नबीन चंद्र दास नामक हलवाई ने बनाया था. दास ने सुतानुटी (वर्तमान बागबाजार) में स्थित अपनी मिठाई की दुकान रसगुल्ला बनाना शुरू किया.
पश्चिम बंगाल का भी दावा है कि रसगुल्ला उनके राज्य की मिठाई है. कहते हैं कि स्पंजी सफेद रसगुल्ला को वर्तमान पश्चिम बंगाल में साल 1868 में कोलकाता स्थित नबीन चंद्र दास नामक हलवाई ने बनाया था. दास ने सुतानुटी (बागबाजार) में स्थित अपनी मिठाई की दुकान रसगुल्ला बनाना शुरू किया था.
रोशोगुल्ला और राजभोग...
सबसे मशहूर बंगाली मिठाइयों में से एक, रोशोगोला छेना से बनी एक नरम गोल मिठाई है जिसे चीनी की चाशनी में डुबोया जाता है.
राजभोग इस प्रसिद्ध मिठाई का एक करीबी चचेरा भाई है, जिसके बीच में स्वादिष्ट भरावन होता है जिसे सूखे मेवे, केसर, इलायची आदि से बनाया जा सकता है.
आपको ये भी बता दें कि रसगुल्ले को इंग्लिश में सिरप फील्ड रोल (Syrup Filled ball) कहते हैं और इसका सही नाम यही है. नेपाल में रसगुल्ला रसबरी नाम से लोकप्रिय हो गया.
सभी बंगाली मिठाइयों का राजा, रोशोगुल्ला बंगाली भोजन का पर्याय बन गया है. बंगाली लोग मिस्टीदोय बड़े चाव से खाते है.
पश्चिम बंगाल, खास तौर पर कोलकाता शहर, अपने मुलायम और स्पंजी किस्म के रसगुल्ले के लिए जाना जाता है, जिसे अक्सर "बंगाली रसगुल्ला" कहा जाता है.
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